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Khalistan: कहानी खालिस्तान की, जिसने पंजाब को जला दिया, PM-CM की हत्या कर दी थी

What is Khalistan: पंजाब के जगजीत सिंह चौहान ने खालिस्तान का नाम दिया था. जगजीत सिंह चौहान 1969 में पंजाब से ब्रिटेन चले गए थे. वहां उन्होंने खालिस्तान नेशनल काउंसिल की स्थापना भी की. ब्रिटेन और कनाडा में अब भी कई खालिस्तानी मौजूद हैं.

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अलग खालिस्तान की मांग अब भी उठती रहती है. (प्रतीकात्मक तस्वीर)
अलग खालिस्तान की मांग अब भी उठती रहती है. (प्रतीकात्मक तस्वीर)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • 1929 में पंजाब को अलग देश बनाने की मांग उठी
  • आजादी के बाद पंजाबी सूबा आंदोलन शुरू हुआ था
  • 1980 के दशक में हिंसा से जल उठा था पंजाब

पिछले हफ्ते पंजाब के पटियाला में खालिस्तान समर्थकों और शिवसेना कार्यकर्ताओं के बीच हिंसक झड़प हुई थी. सोमवार को हिमाचल में खुद को आम आदमी पार्टी का सोशल मीडिया इंचार्ज बताने वाले हरप्रीत सिंह बेदी ने खालिस्तान के समर्थन में कई सारे ट्वीट किए. लेकिन ये खालिस्तान आखिर है क्या जिसकी चर्चा समय-समय पर होती रहती है?

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इसकी कहानी शुरू होती है 31 दिसंबर 1929 से. उस समय लाहौर में कांग्रेस का एक अधिवेशन हुआ. इस अधिवेशन में मोतीलाल नेहरू ने 'पूर्ण स्वराज्य' की मांग की. कांग्रेस की इस मांग का तीन समूहों ने विरोध किया. एक मोहम्मद अली जिन्ना का मुस्लिम लीग. दूसरा भीमराव अंबेडकर की अगुवाई वाला दलित समूह. और तीसरा था मास्टर तारा सिंह का शिरोमणि अकाली दल. तारा सिंह ने ही पहली बार सिखों के लिए अलग राज्य की मांग की थी. 

आजादी के बाद भारत का बंटवारा हुआ और पाकिस्तान अलग देश बना. इससे पंजाब भी दो हिस्सों में बंट गया. एक हिस्सा पाकिस्तान के पास गया और दूसरा हिस्सा भारत में रहा. इसके बाद अकाली दल ने सिखों के लिए अलग प्रदेश की मांग तेज कर दी. इसी मांग को लेकर 1947 में 'पंजाबी सूबा आंदोलन' शुरू हुआ.

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सिखों के लिए अलग राज्य की मांग को लेकर 19 साल तक आंदोलन चलता रहा. आखिरकार 1966 में इंदिरा गांधी ने इस मांग को मान लिया. इंदिरा गांधी की सरकार में पंजाब को तीन हिस्सों में बांटा गया. सिखों के लिए पंजाब, हिंदी बोलने वालों के लिए हरियाणा और तीसरा हिस्सा चंडीगढ़ था. उस समय चंडीगढ़ को पंजाब और हरियाणा दोनों की ही राजधानी बनाया गया. राजधानी को लेकर आज भी पंजाब और हरियाणा के बीच विवाद चल रहा है. 

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सिखों के लिए अलग 'खालिस्तान'

1969 में पंजाब में विधानसभा चुनाव हुए. इस चुनाव में टांडा विधानसभा सीट से रिपब्लिक पार्टी ऑफ इंडिया के उम्मीदवार जगजीत सिंह चौहान भी खड़े हुए, लेकिन हार गए. चुनाव हारने के बाद जगजीत सिंह चौहान ब्रिटेन चले गए और वहां खालिस्तान आंदोलन की शुरुआत की. खालिस्तान यानी खालसाओं का देश.

1971 में जगजीत सिंह ने न्यूयॉर्क टाइम्स में खालिस्तान आंदोलन के लिए फंडिंग की मांग करते हुए एक विज्ञापन भी दिया था. 1977 में जगजीत सिंह भारत लौटे और 1979 में फिर ब्रिटेन चले गए. यहां जाकर उन्होंने 'खालिस्तान नेशनल काउंसिल' की स्थापना की. 

आनंदपुर साहिब रिजोल्यूशन पास हुआ

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1966 में इंदिरा गांधी की सरकार ने सिखों के लिए अलग प्रदेश बना दिया. इससे पंजाब में कुछ साल तक तो शांति रही, लेकिन 1973 में अकाली दल ने पंजाब को ज्यादा अधिकार देने की मांग रख दी. पहले 1973 और फिर 1978 में अकाली दल ने आनंदपुर साहिब प्रस्ताव पास किया, जिसमें पंजाब को ज्यादा अधिकार देने के कुछ सुझाव रखे गए थे. इस प्रस्ताव में सुझाया गया कि केंद्र सरकार का सिर्फ रक्षा, विदेश नीति, संचार और मुद्रा पर अधिकार हो, बाकी सभी मामलों पर राज्य सरकार को अधिकार हो. इस प्रस्ताव में पंजाब को और ज्यादा स्वायत्ता यानी ज्यादा अधिकार देने की बात कही गई थी. इसमें अलग देश की बात नहीं थी. 

जरनैल सिंह भिंडरावाले की ये तस्वीर 1982 की है. (फाइल फोटो)

फिर हुई जरनैल सिंह भिंडरावाले की एंट्री

13 अप्रैल 1978 को अकाली कार्यकर्ताओं और निरंकारियों के बीच हिंसक झड़प हुई. इस झड़प में 13 अकाली कार्यकर्ताओं की मौत हो गई. इसके बाद रोष दिवस मनाया गया. इसमें जरनैल सिंह भिंडरावाले ने हिस्सा लिया. भिंडरावाले ने पंजाब और सिखों की मांग को लेकर कड़ा रवैया अपनाया. वो जगह-जगह भड़काऊ भाषण देने लगा. 

80 के दशक की शुरुआत में पंजाब में हिंसक घटनाएं बढ़ने लगीं. 1981 में पंजाब केसरी के संस्थापक और संपादक लाला जगत नारायण की हत्या हो गई. पंजाब में बढ़ती हिंसक घटनाओं के लिए भिंडरावाले को जिम्मेदार ठहराया गया, लेकिन उसके खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं होने के कारण गिरफ्तार नहीं किया जा सका.

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अप्रैल 1983 में पंजाब पुलिस के डीआईजी एएस अटवाल की गोली मारकर हत्या कर दी गई. कुछ दिन बाद पंजाब रोडवेज की बस में घुसे बंदूकधारियों ने कई हिंदुओं को मार दिया. बढ़ती हिंसक घटनाओं के बीच इंदिरा गांधी ने पंजाब की कांग्रेस सरकार को बर्खास्त कर दिया और राष्ट्रपति शासन लगा दिया.

इससे पहले 1982 में भिंडरावाले ने स्वर्ण मंदिर को अपना घर बना लिया. कुछ महीनों बाद भिंडरावाले ने सिख धर्म की सर्वोच्च संस्था अकाल तख्त से अपने विचार रखने शुरू कर दिए. 

पंजाब में बढ़ती हिंसक घटनाओं को रोकने के लिए भिंडरावाले को पकड़ना बहुत जरूरी था. इसके लिए इंदिरा गांधी की सरकार ने 'ऑपरेशन ब्लू स्टार' लॉन्च किया. इस ऑपरेशन के सैन्य कमांडर मेजर जनरल केएस बराड़ का कहना था कि कुछ ही दिनों में खालिस्तान की घोषणा होने जा रही थी और उसे रोकने के लिए इस ऑपरेशन को जल्द से जल्द अंजाम देना जरूरी था.

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ऑपरेशन ब्लू स्टार की शुरुआत...

1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार शुरू किया गया. एक जून से ही सेना ने स्वर्ण मंदिर की घेराबंदी शुरू कर दी थी. पंजाब से आने-जाने वाली रेलगाड़ियों को रोक दिया गया. बस सेवाएं रोक दी गईं. फोन कनेक्शन काट दिए गए और विदेशी मीडिया को राज्य से बाहर जाने को कह दिया गया. 

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3 जून 1984 को पंजाब में कर्फ्यू लगा दिया गया. 4 जून की शाम से सेना ने गोलीबारी शुरू कर दी. अगले दिन सेना की बख्तरबंद गाड़ियां और टैंक भी स्वर्ण मंदिर पर पहुंच गए. भीषण खून-खराबा हुआ. 6 जून को भिंडरावाले को मार दिया गया. 

स्वर्ण मंदिर पर केंद्र सरकार की इस कार्रवाई का देशभर में विरोध हुआ. सिख समुदाय ने इसकी आलोचना की. कांग्रेस में भी फूट पड़ गई. इस कार्रवाई में आम लोगों की मौत के विरोध में कैप्टन अमरिंदर सिंह समेत कांग्रेस के कई नेताओं ने इस्तीफा दे दिया. कई सिख लेखकों ने अपने पुरस्कार लौटा दिए.

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, इस ऑपरेशन में 83 सैनिक शहीद हुए थे और 249 घायल हुए थे. वहीं, 493 चरमपंथी या आम नागरिक मारे गए थे और 86 लोग घायल हुए थे. 1592 लोगों को गिरफ्तार किया गया था.

शुरू हुआ मौतों का सिलसिला

भिंडरावाले की मौत के बाद हालात बहुत बिगड़ गए. इस ऑपरेशन के चार महीने बाद ही 31 अक्टूबर 1984 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या उनके दो सिख बॉडीगार्ड्स सतवंत सिंह और बेअंत सिंह ने कर दी. इंदिरा गांधी पर इतनी गोलियां चलाई गईं थीं कि उनका शरीर क्षत-विक्षत हो चुका था. 

इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देशभर में सिख विरोधी दंगे भड़क गए. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, अकेले दिल्ली में ही 2,733 सिखों को मौत के घाट उतार दिया गया. वहीं देशभर में 3,350 सिख मारे गए थे. ऐसा आरोप लगा था कि इन सिख विरोधी दंगों को कांग्रेस नेताओं ने ही हवा दी थी. 

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23 जून 1985 को कनाडा के मोन्ट्रियल से लंदन जा रही एअर इंडिया की फ्लाइट को हवा में ही बम से उड़ा दिया गया. इससे विमान में सवार सभी 329 यात्रियों और क्रू मेंबर्स की मौत हो गई. बब्बर खालसा ने इस हमले की जिम्मेदारी लेते हुए इसे भिंडरावाले की मौत का बदला बताया था. 

10 अगस्त 1986 को ऑपरेशन ब्लू स्टार को लीड करने वाले पूर्व सेना प्रमुख जनरल एएस वैद्य की पुणे में हत्या कर दी गई. खालिस्तान कमांडो फोर्स ने इसकी जिम्मेदारी ली. 31 अगस्त 1995 को एक सुसाइड बॉम्बर ने पंजाब के सीएम बेअंत सिंह की कार के सामने खुद को उड़ा लिया. इसमें बेअंत सिंह की मौत हो गई. 

भारत में खालिस्तान आंदोलन खत्म, लेकिन बाहर है जारी

भारत में खालिस्तान आंदोलन अब खत्म हो चुका है, लेकिन अब भी देश के कई हिस्सों में खालिस्तान समर्थक मौजूद हैं. ब्रिटेन और कनाडा में अब भी कई आंदोलनकारी हैं जो खालिस्तान की मांग कर रहे हैं. 

 

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